अरबपतियों से भी ज्यादा दान देते हैं आम लोग
हमारे जीवन के कई सपने होते हैं जो हमारे परिवार, बच्चों और उनके भविष्य से जुड़े होते हैं। जीवन की हर प्राप्ति हमें कहीं न कहीं संतुष्टि और खुशी अवश्य देती है। लेकिन आज के समाज में मैं देखती हूॅं कि जीवन में उन सभी आशाओं को पुरा-पुरा करते कहीं न कहीं हमारी खुशी गुम होती जा रही है। आखिर वो कौन से कारण है जो हमारी खुशी को हमसे दूर कर देते हैं और पारिवारिक सम्बन्धों में दूरियां ला देती है। अगर हम सारे दिन की दिनचर्या पर ध्यान दे तो हमें यही लगता है कि यह परिस्थितियों की एक श्रृंखला है जो लगातार फिल्म की तरह चलता ही रहता है। कोई पल हमें खुशी देता है तो कोई पल हमें उदास भी कर देता है। अर्थात हमारे मन मुताबिक कोई कार्य करता है तो इससे मुझे खुशी मिलती है। इसका मुख्य कारण यही है कि हमारा वर्तमान जीवन व्यक्ति और लोगों के ऊपर निर्भर कर रही है। सुबह का एक सीन आया कि बच्चे स्कूल जाने के लिए समय पर तैयार तो हो गए लेकिन उनको लेने के लिए बस नहीं आयी तो मुझे गाड़ी निकालने के लिए जल्दी-जल्दी जाना पड़ा। पहले वाले सीन में खुशी थी लेकिन दूसरे सीन खुशी गुम हो गई। फिर अगला सीन आता है स्कूल समय पर तो पहुंच गए, फिर याद आया कि बच्चे ने जो होमवर्क किया था वो नोट बुक तो घर पर ही रह गई। ये सारे ऐसे सीन हैं जो हमारे मानसिक संतुलन पर प्रभाव डालते हैं। क्योंकि मैंने अपने मन का कंट्रोल पूरी तरह से परिस्थितियों के ऊपर दे दिया और मैंने सोचा कि ये तो नॉर्मल है ऐसा चलता ही है। फिर धीरे-धीरे दिन प्रतिदिन जीवन की चुनौतियां बढ़ती गई जिसके कारण हमारे जीवन में परेशानी बढऩे लगी। फिर हमने अपने जीवन को देखना शुरू किया हमारा जीवन कहां है। तब मैं अपने आपसे प्रश्न पूछती हूॅं कि सब कुछ तो है, एक अच्छा पति, एक अच्छी पत्नी, दोनों जॉब में हैं, अच्छा खासा मासिक वेतन घर आ रहा है, दो स्टोरी मकान बन चुकी है, बाहर दोनों के लिए अलग-अलग गाडिय़ां हैं, बच्चों के लिए भी सबकुछ है, फिर हम खुश क्यों नहीं है सब कुछ होते हुए भी अंदर खालीपन क्यों महसूस हो रहा है।
हम सभी को यह मालूम है कि हमारा जीवन चार दिनों का नहीं है। यह तो एक लम्बी यात्रा है जिसमें स्वाथ्य रहना बहुत ही आवश्यक है। इस यात्रा में जीवित रहने और शरीर को स्वस्थ्य रखने के लिए भोजन बहुत ही जरूरी है। यदि हमारा स्वास्थ्य अच्छा होगा तभी हम ठीक तरह से काम कर पायेंगे। लेकिन कहीं न कहीं हमने इमोशनल हेल्थ और शारीरिक हेल्थ को अलग-अलग कर दिया है। अगर उसको भी हम जीवन में उतनी ही प्राथमिकता दे जितना शरीर के स्वास्थ्य को देते हैं तब हम जीवन की यात्रा में ठीक तरह से चल पायेंगे। अब पांच मिनट पहले हमें पता चला कि बच्चे को स्कूल छोडऩे जाना है। अगर उस समय मैं शांत रहूं, स्थिर रहूं, छोडऩे तो फिर भी आपको जाना ही है, गाड़ी तो आपको फिर भी चलानी ही है, लेकिन गाड़ी हम दुखी होकर चलायेंगे, मन में बहुत सारे विचार आयेंगे। अगर हम इमोशनल हेल्थ को भी उतना ही महत्व दें कि ये सब परिस्थितियां और हमारी भावनायें अलग-अलग नहीं है, यह तो एक पैकेज है। जो हमें परिस्थितियों के साथ मिलता है। यदि मैं इमोशनल रूप से स्वस्थ हूॅं तो मैं परिस्थितियों को बहुत ही सरलता से पार कर सकती हूॅं। लेकिन हम क्या करते हैं पहले परिस्थितियों का सामना करने लग जाते हैं फिर बाद में इमोशनल हेल्थ के बारे में सोचते हैं।
आज स्वास्थ के प्रति इतनी जागरूकता क्यों आयी है। इसके लिए हमें ज्यादा पीछे जाने की जरूरत नहीं है। हम सिर्फ एक पीढ़ी पीछे जाते हैं और सिर्फ अपने माता-पिता को देखते हैं। वे कभी भी पैदल करने नहीं गए, उन्होंने कभी मिनरल वाटर नहीं पिया, उस समय भोजन का इतना ध्यान नहीं रखा जाता था। हमलोगों के यहां साधारण भोजन बनता था और उसे ही हम सभी लोग आपस मिलकर खुशी-खुशी से खाते थे। लेकिन आज हमारी भावनाओं का दवाब शरीर के ऊपर इतना ज्यादा है कि कोई न कोई समस्या शरीर के साथ चलती ही रहती है। क्योंकि हमने आत्मा के स्वास्थ्य का ध्यान नहीं रखा जिसके कारण सारी समस्यायें आनी शुरू हो जाती है। अगर हम आत्मा के हेल्थ का ध्यान रखें तो मन पर जो इतना दबाव है उसके लिए आपको ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ेगी। अगर आप दो-तीन लोग इक्_े जॉगिंग कर रहे हैं तो आप उस समय स्वयं के मन की स्थिति को चेक कीजिए कि मन में किस प्रकार के विचार आ रहे हैं। हम स्वस्थ रहने के लिए जॉगिंग कर रहे हैं लेकिन मन में नकारात्मक विचार आ रहे हैं। तो हमारे इन विचारों का प्रभाव मन के साथ-साथ पूरे शरीर पर पड़ता है। जब तक आप यह स्वयं अनुभव नहीं करेंगे कि हमारी भावनाओं का शारीरिक स्वास्थ पर कितना गहरा प्रभाव पड़ता है तब तक आप स्थिर नहीं रह सकते हैं।